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जय राजपुताना

जयमाता जी की ,
  मेरा नाम मोती सिंह राठौड़ हैं। मैं जोधपुर जिले की बावड़ी तहसील में जोइंतरा का रहने वाला हूँ। मैं राजपूत हूँ इस पर मुझे गर्व हैं लेकिन समाज की स्थिति और बिखराव ,ईर्ष्या,एक दूसरे को गिराने की ,समाज के बनते काम को बिगाड़ने की राजनीती ,जो समाज कभी धरती तोलता था वो आज पेट पालने और जीवन गुजारने तक ही सीमित हो गया।  घूम फ्हिर कर एक ही शब्द हैं और वो समाज का हर सज्जन जानता हैं। लेकिन करे तो क्या करे।,कैसे समाज को एक किया जाये ,कैसे समाज को आगे बढ़ाया जाये ,कैसे समाज की आर्थिक स्थति पटरी पर लाई जाये।

  समाज में  पहले भी कई बड़े बुजुर्ग ऊंचे पदों पर  राजा महाराजा और ठाकुरो के पदों पर रहे हैं और आज भी हैं। इस जाति का अपना वजूद हैं और था। देवताओ ने भी इस जाति में जन्म लेना सही समझा। खान पान,पहनावों, रहन-सहन, अदब और इज्जत का दायरा बड़ा उच्च रहा हैं और आज भी हैं लेकिन। .... वकत नै राजपूत को आज निचे के पायदान पर खड़ा कर दिया हैं। क्या कारन हैं जब भी घर में या परिवार में कोई काम गलत होता हैं तो हम सीधा उसको करने वाले या करने के तरीके पर जाते हैं। तो फ्हिर समाज आज जिस दौर से गुजर रहा हैं उसका भी कोई कारण हो सकता हैं।

                        जब भी कोई पौधा या रोपण किया जाता हैं तो पहले उसको लगाने का विचार किया जाता हैं। पौधा लगने के बाद पछताने से कोई फायदा नहीं। मेरा व्हाट्सप्प ग्रुप हैं। मैं समाज मैं आरहे उब्बाल को रोज देख रहा हूँ और व्हाट्सप्प के जरिये काफी पढता भी हूँ। मैंने एक बात नोट की हैं की जब भी समाज आगे कदम बढ़ाता हैं तभी चारो तरफ से ताने और फ़ितरतों की बाढ़ आ जाती हैं।


                   मेरा मानना हैं की इस समाज में पहले संत पैदा होते थे लेकिन आज तो पैदा होने वाले हर बच्चे को गृहस्थी बनना हैं। साधु संत तो बेकार और आवारा लोगो का जीवन हैं। इस लिये समाज में संत पैदा होने बंद हो रहे हैं। जिस समाज में संत पैदा बंद होंगे और वासना के शिकार लोग पैदा होंगे वो समाज एक दिन काल का  ग्रास पका बनेगा। जब तक हर गांव और तहसील जिले में समाज में संत नहीं होंगे तो समाज को रास्ता कौन देखिएगा।
                        जैसे कुछ समाज आज की तारीख में देखे तो जैन जिनके चारो तरफ जैन समाज के आमिर आमिर लोग,जवान लड़के लड़कियां जैन साध्वियां बन रहे हैं। जैन समाज अपने संतो की कितनी इज्जत और परवाह करता हैं। यह बताने की जरुरत ही नहीं। एक समय था जब सभी धर्मो के संत साधु राजपूत जाति से निकलते थे। जैनो के सभी तीर्थांकर राजपूत थे। लेकिन आज तो कुछ गिने चुने राजपूत वंश के साधु संत हैं ,क्यों

                       आज हमें सोचना होगा क्यों समाज में अन्य जातियों के साधु संत जाएदा हो रहे हैं लेकिन राजपूत समाज के कम पड़ रहे हैं। बड़े बड़े राजा महराजाओं के ऊपर हाथ साधु संतो का था। दिशा संतो की और राज राजाओ का। आज राजपूत बदनाम बर्बादी,आपसी रंजिश,शादी के लेनदेन,शराब,मांस ,और  एक दूसरे को गिराने की प्रवर्ति चर्म पर हैं तो फिर समाज का क्या होगा,समाज किस दिशा में जाएगा ,यह सब प्रश्न हमें कचोट रहे हैं।
    अगर समाज में महाराणा प्रताप ,शिवाजी ,दुर्गा दास ,राणा हमीर ,हाड़ी रानी,रानी पद्मनी का जौहर आज देखना हैं तो हमें राजपूत समाज के नियम मानने होंगे। खान पान और रजपूती गुणों का निखारना होगा। राजपूत जानता के विश्वास को जितने से बनता हैं। पहले भी आम जनता ही राजा और ठाकुर बनाती थी। लेकिन कुछ समाज की भी गलतियां हैं जो समाज को खा रही हैं।

                     समाज के दिन इतने कमजोर आने का कारन समाज में लड़कियों को घर छुड़ाने के लिए दहेज़ और टिका देना पड़ता हैं। जो लड़की मोल भाव से आप के घर आ रही हैं। वो कभी भी दिल और आत्मा से आप  नहीं हो सकती ,उस लड़की के सामने उसके मजबूर माँ बाप का चेहरा हमेशा आता हैं जब उसको इस घर की बहु बनने के लिए चुकाया हैं। सबसे पहले दहेज़ बंद करना होगा। जिससे लड़की को सम्मान मिल सके। क्यों की जब भी मुगलो नै हमला क्या था तो राजपूत छत्राणियो नै भी अपनी बलि और जौहर पर जिन्दा बैठी हैं। केवल राजपूत मर्द ही नहीं राजपूत नारी भी समाज के उथान में बराबर की भागीदार हैं। तो  समाज सुधार में सबसे पहले दहेज़ प्रथा बंद करना होगा।
                           समाज सुधार में जो दूसरी कड़ी हैं वो जब भी बहन बेटी,या राजपूत नारी के गर्भ में जो बच्चा तीन महीने का होगया हैं। उस बहन बेटी और राजपूत नारी को घर में स्वछ और सुन्दर माहौल मिलना चाहिए। क्यों की यह तो महाभारत में भी बताया गया हैं की जब अर्जुंन अपनी पत्नी को चक्रव्ह्य की लड़ाई की कहानी सुना रहा होता हैं तब पत्नी चक्रव्ह्य की आधी कहानी में सो जाती हैं और गर्भ में अभिमन्यु आधी कहानी ही सुन पाता हैं और आधी कहानी के बाद माँ के सोने से गर्भ में अभिमन्यु भी सो जाता हैं। इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

                              समाज में संत पुत्रों का सम्मान किया जावे और समाज में जब कोई संत बनना चाहे तो सहर्ष स्वीकार करे। जिस से समाज को महान आत्माएं मिल सके। जो समाज की दिशा और दिशा दे सके।
                             समाज को नशा मुक्त करना होगा ,जिसको जितना हो सके नशा मुक्ति की कशिश करनी होगी। सरकार भी कहती हैं की शुद्ध खून में जब नशा जाता हैं और खून में मिल जाता हैं तो वो नशा करता की अगली पढ़ी यानि नशा करता की संतान जो पैदा होती हैं। जब कोई कहता हैं क्या करेगा समाज तो उसको समझाना की अगर आप समाज को निचा दिखाने वाला काम करोगे तो समाज सबकुछ कर सकता हैं। अर्थात जो भी समाज को निचा दिखाने का काम करे तो उस पर लगाम लगाना जरुरी हैं।
                           शिक्षा समाज की आँख होती हैं केवल नौकरी के लिये नहीं पढ़ना जीवन का अभिन अंग हैं। क्यों की बिना शिक्षा तो आप समाज में ढोर हो अर्थात पशु हो पहले तो बुजर्गो के पास शीक्षा नहीं थी लेकिन आज तो हैं इस लिये यदि कोई व्यापारी भी हो या किसान पढ़ना जरुरी हैं।
                          सबसे बड़ी बात समाज में इस प्रकार के नियम बने की जहां भी राजपूत भाई निचे गिर रहा हैं तो समाज मिलकर उसको सहारा दे जिससे समाज पंगु और अपंग नहीं होगा। आप यह मत सोचो की वो राजपूत तो बिहार या भीलवाड़ा या मध्य परदेश को हैं लेकिन आप यह क्यों नहीं सोचते की नासूर शरीर के किसी भी हिसै में हो बीमार पूरा शरीर होता हैं।
                          सभी समाज में अपनी छवि साफ सुथरी रखो,दूसरे समाज भी सोचे की वास्तव में राजपूत हैं।

अगले लेख में और कुछ समाज के चरणों में मेरी भेंट। ................
                                                        जय  राजपुताना ,जय हिन्द जय भारत
                                                                                                            मोती  सिंह राठौड़ (जोइंनतरा) 

                                                                                                                        लेखक

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