राजपूत धरती पुत्र हैं। धरती का मुख्य आधार हैं। वैसे तो धरती पर रहने वाली जातियां और वंश राजपूत ही थे लेकिन समय के साथ अपने कर्मो से अलग अलग जातियों का नव निर्माण करते गए। जोकि समय के साथ साथ सदैव गति शील रहे।
राजपूत जोकि मुख्यधारा प्रवाह के साथ साथ जीवन के नियम और कायदों व रयत यानी जनता यानी प्रजा की रक्षा और सेवा के कर्मभाव से जुड़ा रहा वही आज राजपूत हैं।
केवल राजपूत परिवार में जन्म लेने से ओर कर्म के फल से लग होना ही राजपूत समाज का मुख्य ध्य्य नही हैं। राजपूत के कर्म क्षेत्रो के कुछ नियम और आयाम हैं। यदि धन ही राजपूतो की शान होता तो समझो कि अन्य जातियों और बिरादरी के पास भी धन हैं। लेकिन क्या राजपूत समाज ने गहराई में जाकर पूर्वजो की मुख्य विचारधारा का ध्य्यन किया।
राजपूत समाज के जितने भी सुरवीर और राजा महाराजा हुए की कभी आपने गंभीरता से उनके जीवन का ध्य्यन किया। क्या राजपूत महापुरुषों के जीवन चरित्रों का ध्यान किया।
तो आप एक ही बात पाएंगे। कि सदैव क्षत्रिय ने तलवार की धार और जनता की रक्षा पर ध्यान दिया।जनता ने मन से मान और सन्मान दिया। जनता की रक्षा के लिए सदैव अपना शीश कटवाने की पहल की। जब भी जनता में कोई समस्या य मुसीबत पड़ती तो राजपूत अपनी तलवार और घोड़े की पीठ का ध्यान रखता था। साथ ही माँ भगवती का ध्यान और मनन ही राजपूत समाज की ताकत थी।
राजपूतो के रक्त में शौर्य और शूरवीरता का उबाल का कारण ही कमजोर और बलहीन व अबला नारी और पशु पक्षी से लेकर जीव जंतु की रक्षा कारण ही मुख्य ध्य्य।
धरती की मुख्य ताकतवर वस्तुओ का संग्रह है राजपूत खून में ताकत उबाल,तलवार की धार है राजपूत,ध्यान की पराकाष्ठा है राजपूत, गति के साथ चलने वाले घोड़ो के मालिक ही राजपूत,जंगल के राजा शेर का चिन्ह है राजपूत,शर्म और मर्यादा की मूर्ति है राजपूत, कमजोर की आशा है राजपूत, नारी और अबलाओं के रक्षक है राजपूत, धरती का पुत्र है राजपूत,मुछो के ताव व आन बान का रखवाला है राजपुत, परन्यता का घमंड है राजपूत, धरती का पुत्र है राजपूत,दिशाओं और हवाओ का वेग है राजपूत।
फिर क्यो राजपूत का सन्मान आज रयत के बीच नगण्य सा हो चला। क्यो आज राजपूत समय की धारा में इतिहास से भटक चुका हैं।
इतिहास सदैव कठोर और कड़वे जीवन के अनुभवों से आयेगा। जीवन मे सदैव एक बात के ध्यान रखना की कभी भी मर्यादा गयी जीवन गया। मर्यादा ही जीवन के सार हैं।
धन नही राजपूत के पास लोहे सा तन दिया।
ईश्वर जब धरती पर बहुत कुछ बांट रहा था तब उसने राजपूतो को तन,बनियो को धन और नयो को कर्म दिया।
अर्थात राजपूत के पास कितना भी धन हो ऐश आराम हो,सुंदरता हो या सम्पूर्ण विलासिता के साधन हो। अय्यासी में सराबोर है। अपने जीवन मे मसगुल हैं। रयत से मुंह मौड़ चुका है अपने जीवन को आराम देने के लिए स्वयम के आराम के संग्रह में लग गया। क्या जनता ऐसे राजपूतो की इज्जत करेगी। नही तो क्यो। क्योकि ईश्वर ने राजपूत को जो सबसे अहम गहना दिया उसको राजपूत ने त्याग दिया हैं और वो गहना है तन। यानी आज भी सच्चा राजपूत यदि आभाव में झोपड़े में जी रहा है और तन से सदैव रयत यानी जनता के साथ खड़ा है तो उस राजपूत और वंश की सदैव जय जयकार होगी।
धनपति राजपूत सिर्फ धन देकर कुछ विशेष जगहों और स्थानों पर माननीय हो सकता है तन देने वाला राजपूत सर्वत्र पूजनीय हो सकता हैं। अतः अब राजपूत समाज को सोचना होगा।
Comments
Post a Comment