आज की पोस्ट का विषय हैं खान पान यानी जो हम आहार शरीर और जीवन को चलाने के लिए लेते हैं। उसका हमारे जीवन मे क्या प्रभाव पड़ता हैं।
हमारे शरीर के साथ साथ हमारे शरीर मे रहने वाली आत्मा किस प्रकार की हैं। देव आत्मा हैं या दानव। हमारा जन्म का वर्ण और वर्ग कैसा हैं। इसका भी हमे ध्यान में रखकर खान पान को सर्वोपरि तव्वजो देनी चाहिए।
आज के समय मे लोग नॉन वेज अर्थात मांसाहार को तव्वजो ज्यादा दे रहे हैं। जबकि पहले शाकाहार का आहार ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता था।
जीवन मे आहार से ही शरीर मे खून बनाता हैं। केवल शरीर मे खून और मांस का होना और हाथों में तलवार और भाले और तीर होने से ही कुछ हासिल नही होगा जबतक हमारे कुल का देव यदि हमारे खानपान से प्रसन्न नही हैं।
मैं हो या आप अक्सर अपने आसपास के खान पान को लेकर अक्सर बड़े बुजुर्ग चर्चाये करते है। कि हमे नॉन वेज नही खाना चाहिए या हुके वेज ही खाना चाहिए।
लेकिन कभी आपने सोचा हैं कि ऐसा क्यों।
तो इसका उत्तर आपको खान पान और आहार से शरीर मे बहने वाले खून से मिलता हैं। हमारे शरीर मे कैसा और किस किस्म का खून बहता हैं वही हमारे कुल,जीवन और भूत और भविष्य का आधार हैं।
मैं एक जगह की किसी कार्यक्रम में गया था वहाँ खान पान को लेकर चर्चा हो गयी। दो पक्षो में आपस मे काफी लंबी तकरार आहार को लेकर हो गयी जोकी अगर थोड़ी देर मैं बीच मे नही आता तो समझो लाठियां और हथियार भी चल जाते।
तब मैंने दोनों पक्षों से शांति और सुलह के लिए मनाया। बाद मैंने एक बात कही की खान पान से क्या होता है।
जैसे चलो इस संसार मे दो तरह के पशु,पक्षी और प्राणी हैं जिस एक पक्ष शाकाहरी और दूसरा मांसहारी। अब थोड़ा गौर करे तो हम पशुओं से शुरू करते हैं।
की कुदरत ने मांसहारी को शारीरिक बनावट में कुछ अलग दिया और शाकाहारी को अलग।
जैसे मांसहारी के पंजे होते हैं। शाकाहारी के खुर होते हैं। मांसाहारी के पंजे शिकार को पकड़ने के लिए होते हैं जबकि शाकाहारी के खुर क्योकी उसको पकड़ने के लिए पंजो की जरूरत नही पड़ती।
शाकाहरी के बच्चे पैदा होते ही आंखे खोल देते हैं और कुछ ही मिनटों में दौड़ने लगते हैं।
जबकि मांसहारी के बच्चे बंद आंखे लेकर पैदा होते है और काफी दिनों बाद आंखे खुलती हैं और चलने में भी समय लगता हैं।
शाकाहरी के आगे के ऊपर नीचे के दांत तेज होते हैं। ताकि घास को दांतों से खा सके। जबकि मांसहारी के ऊपर नीचे साइड के दांत बड़े और शिकार टाइप के होते हैं जोकि शिकार को चीरने फाड़ने के काम आते हैं।
शाकाहरी पानी को होठो से पीता हैं जबकि मांसहारी जीभ से। शाकाहरी धीमे और लंबी सांस लेता है। जबकि मांसहारी हांफते हुए सांस लेता है।
अब हमें यह देखना हैं कि आदमी के पास मांसहारी जैसे शरीर की बनावट है या शाकाहरी जैसे कि।
मैं कुछ नही कहूंगा कि शरीरिक बनावट भी ऊपर वाले ने जब शाकाहरी जैसी दी है तो फिर मांसहारी क्यो। इसका जवाब आपको स्वयं से पूछना होगा।
जब हम शेर और कुते और बिल्ली या अन्य मांसहारी जानवर को घरों में रखना पसंद नही करते तो फिर आप घरों में मांसाहार क्यो काम मे लेते हैं। साथ ही जिन देवी देवताओं को शाकाहरी भोग लगेगा वो घर के अंदर लगेगा। मांसहारी जनवरो को जब घर मे प्रवेश नही है तो फिर घरों ले चूल्हों पर मासांहारी खाना क्यो बनता हैं जबकि कुलदेवी को शाकाहरी ही पसन्द हैं।
अब यदि आपको मांसाहारी खाना खाना खाना है तो आपको मांसहारी देवो को जंगल मे जाकर उसका भोग कर सकते हो। मांसाहार घर के अंदर खाया जाने वाला आहार नही है। जब सब इस बात से सहमत हैं तो फिर इंसान क्यो नही समझता। यह इंसान के संस्कारो पर है।
साथ ही हर विभाग चाहे सरकारी हो या प्राइवेट दोनों में हेड ऑफ डिपार्टमेंट को शांत और साधारण होना आवश्यक हैं जोकि शाकाहरी से ही सम्भव हैं। जबकि मासांहारी से गुस्सा और क्रोध का जन्म होता हैं जोकि किसी भी विषय के लिए हानिकारक है।
अब मैं यह तो नही कहूंगा कि किसको क्या करना हैं या मैं आप पर छोड़ता हूँ कि आप किस प्रकार का आहार लेते हैं आहार ही आपकी पहचान है। आहार ही आपके खून किन किस्म का आधार हैं।
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