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बात छोटी पर हैं पते की

जय माता जी की,                कहते हैं की किसी नै इज्जत कमाई इस लिय हम गर्व से कहते हैं की मैं तो हराजपूत हूँ। हमने ऐसा कोई काम ही नहीं किया जिस से लोग हमारी इज्जत करे। पहले के राजपूतो की छवि से हमारा जीवन चल रहा हैं बरसात की एक रात का वो वाकया मुझे आज भी याद हैं।              मैं मेरे रिस्तेदार के गांव जा रहा था। लेकिन संयोग ऐसा हुआ की। मैं जिस बस में बैठा वो बस घूमते घूमते रात के ११ बजे गॉव पहुंची। रात अँधेरी थी। मैं अंजान था मुझे अभी लगभग तीन चार किलोमीटर और चलना था। तभी मेरे ठीक पीछे एक परिवार जो की पति पत्नी और एक छोटा बच्चा।किसी नै आकर पूछा कहाँ जाओगे। चलो हम छोड़ देंगे। हम भी उसी रस्ते जा रहे हैं। लेकिन उन्होंने मना कर दिया।तभी मेरे कानो में एक शब्द सुनाई दिया। उनको पूछो शायद राजपूत हैं।                                    पति ने मुझे पूछा आप राजपूत हो। मैंने कहा हा.क्या हुआ। पति बोल कुछ नहीं हमें भी गॉव जाना ...

राजपूत क्या हैं।

 राजपूत धरती पुत्र हैं। धरती का मुख्य आधार हैं। वैसे तो धरती पर रहने वाली जातियां और वंश राजपूत ही थे लेकिन समय के साथ अपने कर्मो से अलग अलग जातियों का नव निर्माण करते गए। जोकि समय के साथ साथ सदैव गति शील रहे। राजपूत जोकि मुख्यधारा प्रवाह के साथ साथ जीवन के नियम और कायदों व रयत यानी जनता यानी प्रजा की रक्षा और सेवा के कर्मभाव से जुड़ा रहा वही आज राजपूत हैं।  केवल राजपूत परिवार में जन्म लेने से ओर कर्म के फल से लग होना ही राजपूत समाज का मुख्य ध्य्य नही हैं। राजपूत के कर्म क्षेत्रो के कुछ नियम और आयाम हैं। यदि धन ही राजपूतो की शान होता तो समझो कि अन्य जातियों और बिरादरी के पास भी धन हैं। लेकिन क्या राजपूत समाज ने गहराई में जाकर पूर्वजो की मुख्य विचारधारा का ध्य्यन किया। राजपूत समाज के जितने भी सुरवीर और राजा महाराजा हुए की कभी आपने गंभीरता से उनके जीवन का ध्य्यन किया। क्या राजपूत महापुरुषों के जीवन चरित्रों का ध्यान किया। तो आप एक ही बात पाएंगे। कि सदैव क्षत्रिय ने तलवार की धार और जनता की रक्षा पर ध्यान दिया।जनता ने मन से मान और सन्मान दिया। जनता की रक्षा के लिए सदैव अपना शीश कटव...

मोटिवेशन मंत्र

  जिस प्रकार देव मंत्र होते हैं। जिनके जप करने से और ध्यान करने से देवताओं का संपर्क और वातावरण में एक सकारत्मक पक्ष जागरूक होता हैं। जीव हो या मानव या वृक्ष सदैव ज्ञान और उत्तम सहयोग और विचारो और कर्मो के आदान प्रदान से कड़ी दर कड़ी विकास होते रहता हैं। जीवन का सार है कि बच्चा है या आदमी या युवा जैसा ज्ञान वैसा विकास। जिस प्रकार शरीर की मांस पेशियों को खुराक की जरूरत हैं जिससे मांस पेशियों का विकास बेहतर हो सके और शरीर किसी भी आंतरिक और बाहरी मेहनत के लिए मजबूत बनकर रह सकें ठीक वैसे ही मस्तिष्क को सकारत्मक मोटिवेशन अर्थात सकारत्मक विचारो का सहयोग और साथ समय समय पर चाहिए। जिससे कि युवाओ से के बुजुर्गो और अन्य सभी को अपने जीवन के मार्ग में किसी भी बुरे और नकरात्मक समय मे मस्तिष्क को बेहतर विचारो की खुराक मिल सके। अक्सर गांव देहात हो या मंदिर मस्जिद हो या अन्य धार्मिक और सामाजिक स्थल हो सभी जगह भजन सन्त वाणी गुरु वाणी प्रवचन से लेकर लेक्चर और अन्य ना ना प्रकार से इंसान के दिल और दिमाग अर्थात जीवन के दुखों के अनुभवों को अपने मस्तिष्क और मन से निकाल कर बल और बुद्धि का प्रवाह मस्तिष्क की ...