आज की इस पोस्ट में राजपूत समाज के वास्तविक विकास और सुधार का वो सच और वास्तविकता व अपने विचार समाज तक पहुचाने की कोशिश कर रहा हूँ जोकि समय की मांग के लिए आवश्यक है।
महाभारत में एक किस्सा आता हैं जहाँ कौरव अर्जुन को युद्ध के मैदान से दूर ले जाते हैं। और पीछे चक्रव्यूह की रचना जोकि एक युद्ध कला थी कि रचना करते है।
पांडवो में एक चिंता की लहर दौड़ गयी। कि चक्रव्यूह की युद्ध कला और कौशल तो अर्जुन के पास हैं।
जबकि अर्जुन को इस युद्ध कला से दूर रखने के लिए दूर युद्ध की तरफ आकर्षित कर लिया।
जब सम्पूर्ण पांडव समाज चिंता में बैठा था तब 16 साल का अभिमन्यु युधिष्ठिर को आकार प्रणाम करता हैं।
अभिमन्यु कहता हैं कि मैं इस युद्ध कौशल को जनता हूँ। लेकिन मैं चक्रव्यूह में जाने की कला तो जनता हूँ लेकिन निकलने की कला नही जानता।
सभी अचंभित होकर अभिमन्यु की तरफ देखते हैं कि 16 साल का अभिमन्यु जिसने कभी इससे पहले चक्रव्यूह युद्ध ही नही देखा और न ही युद्ध लड़ा तो फिर यह इस कला के कौशल को कैसे जनता हैं। सभी के इस प्रकार देखने और सोचने पर अभिमन्यु कहता है कि जब मैं माताश्री के गर्भ में था तब पिताश्री ने चक्रव्यूह युद्ध की कहानी माताश्री को सुनाई लेकिन जाने की कहानी तक मैंने भी माताश्री के गर्भ में सुन ली थी लेकिन चक्रव्यूह से निकलने की जानकारी मुझे भी नही हैं
महाभारत का यह किस्सा साबित करता हैं कि माँ का गर्भ ही इंसान के वास्तविक अंदरूनी दिमाग व संरचना का पहला व मुख्य स्थान हैं।
माताओ का गर्भ ही वो निर्माण स्थल हैं जहाँ बच्चे के सर्वांगीण विकास की रूपरेखा व सम्पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण होता हैं।
इसी लिए जिस समाज और परिवार के बच्चे पैदा होते हैं उनके निर्माण में उस समाज के मुताबिक भाषा रहन सहन व खान पान और मुख्य समाज के गुण बचपन से ही कम उम्र से ही आ जाते हैं। कारण हैं कि जब प्रत्येक समाज की माताएं गर्भ धारण करती है उसी समय से बच्चे के जन्म समय तक किस परिवेश में रहती हैं किस परिवेश में जीवन जीती हैं वही जीवन का सार गर्भ में निर्माण होने वाले बच्चे के मस्तिष्क में फीड होते हैं। जिसको आज की भाषा मे कह सकते हैं हार्डवेयर यानी मस्तिष्क का वो हिस्सा जो सबसे मुख्य व महत्वपूर्ण व शुरु के मुख्य क्षण से ही निर्माण करना शुरू कर देता हैं।
इसी लिए शांत और सभ्य समाज मे सर्व श्रेष्ठ और महान व्यक्तित्व का निर्माण होता है। और आपराधिक परिवार और समाज मे आपराधिक किस्म के बच्चों का निर्माण।
अतः राजसमाज मे भी पुरातन समाज मे शास्त्र और शस्त्र के साथ साथ राजपूत समाज के शौर्य और वीर गाथाओं का वर्णन और बखान और चारण, भट,रावजी व अन्य विद्वानों के द्वारा मुख्य चर्चाओ को सुनाया जाता था। युद्ध पराक्रम और अन्य विषयो को राजपूत की माताओ के गर्भ धारण के समय से ही उच्च शांत माहौल में ग्रंथो के पठन और मनन को मुख्य तव्वजो दी जाती थी।
गर्भवती माताओ के कमरों को शांत और विशेष माहौल से सजाया जाता था। 9 महीनों तक गर्भवती माताओं को सम्पूर्ण शुद्ध आचरण और माहौल में रखा जाता और देव पूजन सूर्य पूजन से लेकर तमाम गतिविधि को तव्वजो दी जाती थी।
ऐसी माताओं के गर्भ से राम,कृष्ण,सांगा से लेकर प्रताप,शिवाजी,दुर्गा दास और संख्याओ महान आत्माओ ने इस धरती पर जन्म लिया।
वर्तमान और भूत काल का काफी लंबा समय राजोउत समाज ने मुँह के स्वाद और तुच्छ कर्मो की तरफ रुख कर लिया मैं यह नही कहता कि सम्पूर्ण समाज ने। नही 80% प्रतिशत समाज आज पुरातन समाज के रीति नियमो से भटक कर सिर्फ अपनी भौतिकता और भोग की तरफ मुड़ गया हैं उसी का नतीजा हैं कि आज राजपूत समाज मे युवा का जन्म अत्यन्त विचारणीय व दयनीयता की तरफ बढ़ रहा हैं।
जोकि समाज के लिए चिंता और मनन का समय है।
अब हमें इस समाज को सुधारना हैं तो माताओ के गर्भ को सुधारना होगा। राजपूत समाज की माताओ के गर्भ धारण से लेकर 9 महीनों तक राजपूत समाज की सम्पूर्ण नीतियों को गर्भ में ही निर्माण होने वाले बच्चो के मन से लेकर मस्तिष्क तक भरनी होगी। राजपूत समाज के शौर्य त्याग तप वचन और रयत की सुरक्षा व रयत के बीच अपने आने आने वाली पीढ़ियों और जो इतिहास की पीढियां हैं उनमें विशेष कर्मो को रोपित करना होगा।
राजपूत समाज की नर्सरी का सुधार शायद तभी सम्भव हैं। यह महाभारत का ये किस्सा साबित करता हैं।
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जय राजपुताना जय हिंद जय क्षत्रिय धर्म।
मोती सिंह राठौड़
लेखक/विचारक
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