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Showing posts from June, 2022

मोटिवेशन मंत्र

  जिस प्रकार देव मंत्र होते हैं। जिनके जप करने से और ध्यान करने से देवताओं का संपर्क और वातावरण में एक सकारत्मक पक्ष जागरूक होता हैं। जीव हो या मानव या वृक्ष सदैव ज्ञान और उत्तम सहयोग और विचारो और कर्मो के आदान प्रदान से कड़ी दर कड़ी विकास होते रहता हैं। जीवन का सार है कि बच्चा है या आदमी या युवा जैसा ज्ञान वैसा विकास। जिस प्रकार शरीर की मांस पेशियों को खुराक की जरूरत हैं जिससे मांस पेशियों का विकास बेहतर हो सके और शरीर किसी भी आंतरिक और बाहरी मेहनत के लिए मजबूत बनकर रह सकें ठीक वैसे ही मस्तिष्क को सकारत्मक मोटिवेशन अर्थात सकारत्मक विचारो का सहयोग और साथ समय समय पर चाहिए। जिससे कि युवाओ से के बुजुर्गो और अन्य सभी को अपने जीवन के मार्ग में किसी भी बुरे और नकरात्मक समय मे मस्तिष्क को बेहतर विचारो की खुराक मिल सके। अक्सर गांव देहात हो या मंदिर मस्जिद हो या अन्य धार्मिक और सामाजिक स्थल हो सभी जगह भजन सन्त वाणी गुरु वाणी प्रवचन से लेकर लेक्चर और अन्य ना ना प्रकार से इंसान के दिल और दिमाग अर्थात जीवन के दुखों के अनुभवों को अपने मस्तिष्क और मन से निकाल कर बल और बुद्धि का प्रवाह मस्तिष्क की ...

खान पान और खून

  आज की पोस्ट का विषय हैं खान पान यानी जो हम आहार शरीर और जीवन को चलाने के लिए लेते हैं। उसका हमारे जीवन मे क्या प्रभाव पड़ता हैं।  हमारे शरीर के साथ साथ हमारे शरीर मे रहने वाली आत्मा किस प्रकार की हैं। देव आत्मा हैं या दानव। हमारा जन्म का वर्ण और वर्ग कैसा हैं। इसका भी हमे ध्यान में रखकर खान पान को सर्वोपरि तव्वजो देनी चाहिए।  आज के समय मे लोग नॉन वेज अर्थात मांसाहार को तव्वजो ज्यादा दे रहे हैं। जबकि पहले शाकाहार का आहार ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता था।  जीवन मे आहार से ही शरीर मे खून बनाता हैं। केवल शरीर मे खून और मांस का होना और हाथों में तलवार और भाले और तीर होने से ही कुछ हासिल नही होगा जबतक हमारे कुल का देव यदि हमारे खानपान से प्रसन्न नही हैं। मैं हो या आप अक्सर अपने आसपास के खान पान को लेकर अक्सर बड़े बुजुर्ग चर्चाये करते है। कि हमे नॉन वेज नही खाना चाहिए या हुके वेज ही खाना चाहिए।  लेकिन कभी आपने सोचा हैं कि ऐसा क्यों।  तो इसका उत्तर आपको खान पान और आहार से शरीर मे बहने वाले खून से मिलता हैं। हमारे शरीर मे कैसा और किस किस्म का खून बहता हैं वही हमारे कुल,ज...

गुस्सा यानी क्रोध

आज की पोस्ट जिस विषय पर हैं वो विषय हैं गुस्सा। यानी क्रोध। क्रोध जोकि शरीर को वो अवस्था जिसमे इंसान कुछ समय के लिए जो क्षणिक भी हो सकता हैं और घन्टो और दिनों की अवधि भी हो सकता हैं। जोकि समय की कोई माप सिमा नही हैं।       क्रोध जोकि इंसान के पतन का कारण हैं यह मैं और आप सदियो से पढ़ते आ रहे हैं। जोकि शायद सच्च भी हैं बड़े बड़े विद्वानों और मनीषियों ने कहा हैं।  क्रोध जोकी ताप और आग का एक प्रकार हैं जोकी अदृश्य और कब और किस विषय पर आ सकता हैं पता नही। जीवन मे सदैव ध्यान रखे कि जीवन मे शांति के साथ दुनिया जुड़ना चाहती हैं। लेकिन अशांति के साथ कोई नही जुड़ना चाहता।  दूसरा शांति पानी हैं। गुस्सा पानी हैं। जीवन मे सदा पानी जैसे रहो जैसा बर्तन वैसा आकार। पानी मे शितलता हैं लेकिन आग जोकि गर्म तापमान को इंगित करती हैं। अब जीवन मे किसी व्यक्ति को क्रोध क्यो है। क्या कारण रहा होगा कि व्यक्ति के अंदर क्रोध कूट कूट कर भरा हैं।  यदि क्रोध अपने स्वार्थ और अहम या घमंड के कारण हैं तो समझो आपका पतन निश्चित हैं। भले आप कितने ही गुनी और धनी क्यो न हो।  यदि आप अमीर से अम...

राजपूत क्या हैं।

 राजपूत धरती पुत्र हैं। धरती का मुख्य आधार हैं। वैसे तो धरती पर रहने वाली जातियां और वंश राजपूत ही थे लेकिन समय के साथ अपने कर्मो से अलग अलग जातियों का नव निर्माण करते गए। जोकि समय के साथ साथ सदैव गति शील रहे। राजपूत जोकि मुख्यधारा प्रवाह के साथ साथ जीवन के नियम और कायदों व रयत यानी जनता यानी प्रजा की रक्षा और सेवा के कर्मभाव से जुड़ा रहा वही आज राजपूत हैं।  केवल राजपूत परिवार में जन्म लेने से ओर कर्म के फल से लग होना ही राजपूत समाज का मुख्य ध्य्य नही हैं। राजपूत के कर्म क्षेत्रो के कुछ नियम और आयाम हैं। यदि धन ही राजपूतो की शान होता तो समझो कि अन्य जातियों और बिरादरी के पास भी धन हैं। लेकिन क्या राजपूत समाज ने गहराई में जाकर पूर्वजो की मुख्य विचारधारा का ध्य्यन किया। राजपूत समाज के जितने भी सुरवीर और राजा महाराजा हुए की कभी आपने गंभीरता से उनके जीवन का ध्य्यन किया। क्या राजपूत महापुरुषों के जीवन चरित्रों का ध्यान किया। तो आप एक ही बात पाएंगे। कि सदैव क्षत्रिय ने तलवार की धार और जनता की रक्षा पर ध्यान दिया।जनता ने मन से मान और सन्मान दिया। जनता की रक्षा के लिए सदैव अपना शीश कटव...

गर्भ ही नर्सरी सुधार का समय

  आज की इस पोस्ट में राजपूत समाज के वास्तविक विकास और सुधार का वो सच और वास्तविकता व अपने विचार समाज तक पहुचाने की कोशिश कर रहा हूँ जोकि समय की मांग के लिए आवश्यक है।  महाभारत में एक किस्सा आता हैं  जहाँ कौरव अर्जुन को युद्ध के मैदान से दूर ले जाते हैं। और पीछे चक्रव्यूह की रचना जोकि एक युद्ध कला थी कि रचना करते है। पांडवो में एक चिंता की लहर दौड़ गयी। कि चक्रव्यूह की युद्ध कला और कौशल तो अर्जुन के पास हैं।  जबकि अर्जुन को इस युद्ध कला से दूर रखने के लिए दूर युद्ध की तरफ आकर्षित कर लिया। जब सम्पूर्ण पांडव समाज चिंता में बैठा था तब 16 साल का अभिमन्यु युधिष्ठिर को आकार प्रणाम करता हैं।  अभिमन्यु कहता हैं कि मैं इस युद्ध कौशल को जनता हूँ। लेकिन मैं चक्रव्यूह में जाने की कला तो जनता हूँ लेकिन निकलने की कला नही जानता।   सभी अचंभित होकर अभिमन्यु की तरफ देखते हैं कि 16 साल का अभिमन्यु जिसने कभी इससे पहले चक्रव्यूह युद्ध ही नही देखा और न ही युद्ध लड़ा तो फिर यह इस कला के कौशल को कैसे जनता हैं। सभी के इस प्रकार देखने और सोचने पर अभिमन्यु कहता है कि जब मैं माताश्री के ...